◼️31 मई को है निर्जला एकादशी 



रिपोर्ट :- अजय रावत

गाज़ियाबाद :- प्राचीन ग्रंथों में निर्जला एकादशी का बहुत ही बड़ा महत्व माना गया है ।ऐसा कहा गया है कि वर्ष भर की 24 अथवा 26 एकादशियों का जो पुण्य रखती को मिलता है वही पुण्य ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी के व्रत करने से मिलता है। सूर्या जब प्रचंड गर्मी पर छाता है इस अवसर पर निर्जला एकादशी भी इस तपस्या के समान है इस व्रत में जल पीना भी वर्जित है। द्वापर युग में जब पांडव वन में वनवासी के रूप में विचरण रहे थे। कृष्ण जी ने उन्हें एकादशी व्रत करने की सलाह दी। भीमसेन को यह दायित्व दिया गया कि वह 1 वर्ष तक एकादशी का व्रत रखें, लेकिन  उन्होंने कहा कि प्रभु मैं तो खुद वृकोदर हूं। मुझे बहुत भूख लगती है। इसलिए मैं 24 एकादशी का व्रत नहीं कर सकता हूं । तब श्री कृष्ण ने उनको ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। ज्येष्ठ माह की इस एकादशी के व्रत करने से ही सभी एकादशियों का फल मिल जाएगा।

भीमसेन ने यह बात स्वीकार कर ली। और निर्जला एकादशी का व्रत किया ।इस एकादशी के दिन  निराहार रहे। जल तक नहीं पिया ।उसके प्रभाव से उनका वनवास और अज्ञातवास निर्विघ्न व कुशलता पूर्वक पूर्ण हो गया और पुन: राज्य की प्राप्ति हुई। इसलिए इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन प्रातः काल जल्दी उठे।
पीले अथवा श्वेत वस्त्र पहनें। स्नानादि से निवृत्त होकर  भगवान विष्णु की लक्ष्मी सहित पूजा करें। आवाहन , धूप, दीप, पुष्प माला से पूजन करें ,नैवेद्य, फल ,मिष्ठान आदि का भोग लगाएं। 

1 दिन पहले से ही तामसिक वस्तुओं का प्रयोग ना करें ।लहसुन, प्याज आदि से दूर रहें । मिथ्या वचन न बोले।  अनैतिक कार्य न करें ।भगवान विष्णु के चरणों में ध्यान लगाकर ओम् नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करें ।अथवा विष्णु सहस्त्रनाम ,श्री सूक्तम का पाठ करें ।अगले दिन व्रत का परायण करें। निर्जला एकादशी के दिन घड़ा, जल,पंखा, शरबत, मीठा पानी, स्वर्ण आदि का दान करने का महत्व है।
निर्जला एकादशी व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है । संकटों से मुक्ति मिलती है। मृत्यु के पश्चात वैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है।


आचार्य शिव कुमार शर्मा
आध्यात्मिक गुरु एवं ज्योतिषाचार्य, गाजियाबाद
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