रवि अरोड़ा.....✍🏻
गाज़ियाबाद :- नेता लोगों को अक्सर यह कहते सुना जाता है कि राजनीति में व्यक्ति की चमड़ी मोटी होनी चाहिए । हो सकता है कि यह बात सही भी हो मगर क्या कोई चमड़ी इतनी भी मोटी हो सकती है कि उसे भेद कर अंतरात्मा तक कुछ भी न पहुंच सके ? न शर्म, न लोकलाज, न लोगों की लानतें और न ही थुक्का फजीहत ? यकीनन हमारे नेताओं के पास चमड़ी के अतिरिक्त कोई और अभेद्य रक्षा कवच भी होगा जो उनकी खाल से भी अधिक मोटा है और उसके पार कुछ भी नहीं जा सकता । यदि जा सकता तो हरियाणा सरकार हत्यारे और बलात्कारी राम रहीम को पूरी बेहयाई से सातवीं बार पैरोल पर रिहा नहीं करती और राज्य के मुख्यमंत्री खट्टर भी अभूतपूर्व बेशर्मी से यह न कहते कि हर कैदी के अपने अधिकार होते हैं।
ढाई साल में सातवीं बार डेरा सच्चा सौदा का प्रमुख बाबा राम रहीम शान से जेल से बाहर आया है। कभी मां की बीमारी, कभी कोई शादी तो कभी खेतों की देखभाल के नाम पर उसके लिए जेल के दरवाजे हर बार खुल जाते हैं । इस बार वह चेलों के साथ अपना जन्मदिन मनाने पूरे चालीस दिन के लिए बाहर आया है। बाबा को बार बार पैरोल मिलने में कोई दिक्कत न हो, इसके लिए हरियाणा सरकार ने बकायदा अपना कानून ही बदल दिया है । बेशक इस बात से कोई इनकार नहीं है कि पैरोल और फर्लो हर सजायाफ्ता कैदी का कानूनन अधिकार है मगर क्या कोई यह बताने का कष्ट करेगा कि आजादी के बाद से आज तक इतनी पैरोल मिलने का क्या ऐसा कोई दूसरा उदाहरण भी देश भर में है ? आजादी के बाद ही नहीं क्या अंग्रेजों के दो सौ सालों के राज में भी कभी ऐसा हुआ था ? सरकारी आंकड़ा है कि देश में इस समय पांच लाख 54 हजार लोग जेलों में बंद हैं, क्या बताया जायेगा कि कितनों को यह सुविधा प्रदान की गई है ? क्या यह मजाक नहीं कि देश की 1319 जेलों में बंद 77 फीसदी कैदी विचाराधीन हैं और छोटे मोटे मामलों में भी कई कई साल से उन्हें जमानत तक नसीब नहीं हो रही ? क्या हरियाणा सरकार यह बताने का जहमत करेगी कि उसकी 20 जेलों में फिलवक्त जो 25 हजार 872 कैदी हैं, उनमें से कितनों को पैरोल दी गई और कितनी बार उन्होंने इसका लाभ उठाया है ? वैसे सवाल तो माननीय न्यायाधीशों से भी बनता है कि जब मुल्क में पांच करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं और जरूरत से काफी कम जज उपलब्ध होने के बावजूद कैसे उन्हें इस बात की फुर्सत मिल जाती है कि सारा काम छोड़ कर वे साल में कई कई बार इस हाई प्रोफाइल कैदी की पैरोल याचिका पर सुनवाई करने बैठ जाते हैं ?
अगले साल देश में आम चुनाव होने हैं। हरियाणा की विधानसभा का कार्यकाल भी 2024 में समाप्त हो रहा है। बाबाओं की गोद में बैठ सत्ता का आनंद लेने वाली भगवा ब्रिगेड को लगता है कि चुनावी विजय का फार्मूला केवल इन बाबाओं के पास ही है। यही कारण है कि देश भर में लप्पू झन्ने बाबाओं की बाढ़ सी आई हुई है। ये बाबा जो मुंह में आए वही बक देते हैं और सत्तानशीं लोग कोई कार्रवाई तो दूर उसका संज्ञान तक नहीं लेते । उधर , इन बाबाओं के अनुयाई भी इसे ही धार्मिक लाभ समझ खीसें निपोर देते हैं। हरियाणा इस मामले में सबसे आगे खड़ा है और सजायाफ्ता बाबा राम रहीम जैसों के प्रवचनों में सरकार और भगवा ब्रिगेड के बड़े बड़े नेता पहुंच कर खुद को धन्य समझ रहे हैं। साफ दिख रहा है कि उन्हें सद्बुद्धि नहीं आई तो 2024 के समाप्त होने से पहले बलात्कारी बाबा इसी तरह अभी और कई बार पैरोल और फर्लो पर जेल से बाहर आएगा । वैसे इस पर हैरानी भी क्यों हो ? जिस देश में मणिपुर जैसे महिलाओं के नग्न परेड कांड हो जाते हों और कहीं किसी का कुछ न बिगड़ता हो वहां इस बलात्कारी बाबा जैसे लोग भी मौज नहीं लेंगे तो भला फिर कौन लेगा ?