रिपोर्ट :- अजय रावत

गाजियाबाद :- सरस्वती शिशु मंदिर नेहरू नगर गाजियाबाद में महर्षि वेदव्यास जी की जयंती और गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया गया। वंदना सत्र में मां सरस्वती की वंदना के पश्चात विद्यालय की प्रधानाचार्या श्रीमती रेखा शर्मा जी और कार्यक्रम की संयोजिका श्रीमती संगीता भारद्वाज ने महर्षि वेदव्यास जी के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन कर पुष्पार्चन किया। श्रीमती संगीता भारद्वाज ने गुरु पूर्णिमा के उत्सव पर प्रकाश डाला। उप प्रधानाचार्य शिवकुमार शर्मा ने गुरु पूर्णिमा एवं महर्षि वेदव्यास जी का जीवन परिचय सहित गुरु पर्व का महत्व बताया।

उन्होंने कहा कि गुरु केवल अध्यापक ही नहीं होता। सबसे बड़ा गुरु माता, पिता, शिक्षक और आध्यात्मिक गुरु होते हैं। जो हमें जीवन का उद्देश्य और जीवन जीना सिखाते हैं ।जिससे भी शिक्षा मिले वही गुरु है। महर्षि दत्तात्रेय के 24 गुरु थे। अग्नि, वायु, जल, मूर्ख व्यक्तियों के द्वारा भी उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था ।इसलिए गुरु कोई भी हो सकता है ।हमें  उनको यथायोग्य सम्मान देना चाहिए। संगीताचार्य सुरेंद्र नाथ मिश्रा जी ने गुरु भक्ति का गीत प्रस्तुत किया।

छात्रों ने भी अपने सभी अध्यापकों को तिलक लगाकर व उनके चरण छू करके अपने गउरूओं का आशीर्वाद प्राप्त किया। विद्यालय की प्रधानाचार्या रेखा शर्मा ने गुरु की महत्ता बताते हुए कहा कि *गुरु कुम्हार सिष कुंभ है घड़-घड़ काढे खोट।* *अंदर हाथ सहार दे, बाहर मारे चोट।*
गुरु कुम्हार के समान होता है जो कच्ची मिट्टी को विभिन्न प्रकार की मुद्रा में ढालकर अंदर से हाथ का सहारा देता है और बाहर चोट मारता है ।अर्थात समाज में रहने के लिए विभिन्न परिस्थितियों का सामना करने का उन्हें साहस प्रदान करता है । उन्होंने बताया कि आज के दिन हमें संकल्प करना चाहिए कि गुरु माता-पिता, गुरु और बड़े  व सम्मानित व्यक्तियों की आज्ञा का पालन करें। उनके बताए हुए मार्ग  पर चलें। उनका कहना माने तभी गुरु पर्व मनाने का उद्देश्य सफल होगा।
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