रिपोर्ट :- अजय रावत
गाज़ियाबाद :- विश्व ब्रह्मऋषि ब्राह्मण महासभा के संस्थापक अध्यक्ष ब्रह्मऋषि विभूति बीके शर्मा हनुमान ने नूंह की सांप्रदायिक हिंसा पर जैसी चिंता व्यक्त की है, वह भारतीय समाज के उन दायित्ववान लोगों के लिए विचारणीय होनी चाहिए, जिनकी सभ्य समाज के प्रति की कोई न कोई जिम्मेदारी है। आजादी के बाद भारतीय समाज में यह दायित्वबोध शनैःशनैः कम होता गया, जिसका फायदा असामाजिक और अराजक तत्वों ने उठाना शुरू कर दिया और देश अलगाववाद, आतंकवाद, सांप्रदायिक हिंसा और विभिन्न प्रकार के सामाजिक अपराधों से ग्रस्त होता चला गया। देश की दलीय राजनीति भी इससे अछूती नहीं रही और जातिवाद, परिवारवाद, तुष्टीकरण जैसी अनेक विकृतियों से ग्रस्त होती चली गई।
ऐसे में यदि समाज के दायित्ववान लोग अपनी जिम्मेदारी निभाते तो शायद देश में इतनी विकृतियां नहीं पनपतीं, जो आज देखने को मिल रही हैं। देश के जनप्रतिनिधियों द्वारा संसद और विधानसभा को ठीक से संचालित न होने देने की राजनीतिक अपसंस्कृति से देश का कितना अहित होता है, लगता है इसका तनिक भी अहसास इनको नहीं है। निहित स्वार्थवश छोटी-छोटी बातों को लेकर आंदोलित होने वाली देश की जनता भी राजनीतिक अपसंस्कृति, फैलाने वाले अपने जनप्रतिनिधियों के प्रति कभी आंदोलित होती नहीं दिखाई देती। सांप्रदायिक दंगों की आग को सुलगाने में भी इन नेताओं द्वारा दिए जाने वाले भड़काऊ भाषणों की भूमिका से इन्कार नहीं किया जा सकता।
क्योंकि नूंह की सांप्रदायिक हिंसा को भड़काने में वहां के जनप्रतिनिधियों और स्थानीय नेताओं की भूमिका खुलकर सामने आ रही है। यदि मेवात क्षेत्र के विधायकों और जिम्मेदार लोगों ने ठीक से अपने दायित्व का निर्वाह किया होता तो नूंह में इतना हिंसक उत्पात नहीं होता और जलाभिषेक के शोभायात्रा पूर्व की भांति शांतिपूर्वक संपन्न हो जाती।