रिपोर्ट :- अजय रावत
गाजियाबाद :- देश के जानेमाने आहार विशेषज्ञ पद्मश्री डॉ खादर वली ने कहा कि अगर स्वस्थ जीवन जीना चाहते हैं तो चावल, गेहूं और चीनी खाना छोड़ना पड़ेगा। हमारे शरीर की आधी बीमारियां ग्लूकोज असंतुलन के कारण होती हैं और ये तीनों ग्लूकोज असंतुलन को बढ़ाते हैं। डॉ खादर ने कहा कि बाजार ने हमारा किचन बिगाड़ दिया है और स्वाद ने शरीर। फास्ट फूड हमें बीमार कर रहे हैं। विडम्बना देखिये कि हम जहरीला पदार्थ खाकर तंदुरुस्त होने की उम्मीद पाले बैठे हैं। ध्यान रखिये कि आप का आहार ही आपकी औषधि है।
उन्होंने कहा कि सौ साल पहले हमारे पूर्वज मोटा और छोटा अनाज रागी, बाजरा, चना, मक्का, ज्वार, कोदो, कुटकी, कंगनी, सावां और हरा सावां खाकर सौ वर्ष का जीवन जीते थे। लेकिन हमने चावल, गेहूं, चीनी, मैदा, फास्ट फूड खा-खाकर अपने शरीर को बीमारियों का घर बना दिया है। पहले डॉक्टर कम होते थे तो बीमारियां कम होती थी, आजकल डॉक्टर ज्यादा हो गए हैं तो बीमारियां भी बढ़ गई हैं। कहने को हमने विज्ञान में काफी प्रगति कर ली है तो फिर बीमारियों पर अंकुश लगने की कौन कहे, वह तेजी से बढ़ क्यों रही हैं। इसका मतलब हमें अपनी जीवन शैली बदल लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस देश को डॉक्टर नहीं किसान निरोग कर सकते हैं।
डॉ खादर ने कहा कि वैसे तो 200 प्रकार के मोटे और छोटे अनाज होते हैं लेकिन मुख्यतः 5 मिलेट्स कोदो, कुटकी, कंगनी, सावां और हरा सावां हमारी सेहत के लिए ज्यादा लाभदायक हैं। उन्होंने कहा कि एक किलो चावल के उत्पादन में 8 हजार लीटर पानी की खपत होती है। इसी तरह एक किलो गेहूं के उत्पादन में 6 हजार लीटर पानी की खपत होती है जबकि एक किलो चीनी बनाने में 28 लीटर पानी की खपत होती है। हम अब भी नहीं चेते तो आने वालेसमय में जल संकट गंभीर हो जाएगा। उन्होंने बताया कि एक किलो मिलेट (श्रीअन्न) के उत्पादन में महज 250 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ आर के सिन्हा, पूर्व सांसद की अनुपस्थिति में समाजसेवी अशोक श्रीवास्तव ने की। मंच संचालन अनुरंजन श्रीवास्तव ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन संगत-पंगत की राष्ट्रीय संयोजिका रत्ना सिन्हा ने किया।