रिपोर्ट :- अजय रावत
गाजियाबाद :-
पाश्चात्य जीवनशैली को अपनाने की होड़ और मोबाइल इंटरनेट की दुनिया में गोते लगाती जिंदगी ने पारंपरिक त्योहारों का आकर्षण भले ही प्रभावित किया हो, लेकिन पौराणिक काल से ही पति पत्नी के बीच असीम प्रेम के प्रतीक रहे ‘करवा चौथ' के पर्व का क्रेज दिनो दिन बढ़ता जा रहा है। सुहागिन स्त्रियों द्वारा पति की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत और फिर चांद देखकर व्रत तोड़ने की परम्परा में अब पति भी बराबर के भागीदार बन रहे है और खुशहाल दाम्पत्य जीवन की कामना के साथ कई पुरूष भी अपनी जीवन संगिनी के साथ व्रत रखते है। उत्तर प्रदेश समेत विशेषकर उत्तरी भारत के विभिन्न राज्यों में बुधवार को करवाचौथ का त्योहार मनाया जायेगा।
कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला करवाचौथ पर्व पति के प्रति समर्पण का प्रतीक हुआ करता था लेकिन आज यह पति.पत्नी के बीच के सामंजस्य और रिश्ते की ऊष्मा से दमक और महक रहा है। आधुनिक दौर भी इस परंपरा को डिगा नहीं सका है बल्कि इसमें अब ज्यादा संवेदनशीलता, समर्पण और प्रेम की अभिव्यक्ति की गहराई दिखाई देती है। करवाचौथ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। करवा यानी मिट्टी का बरतन और चौथ यानि चतुर्थी। इस त्योहार पर मिट्टी के बरतन यानी करवे का विशेष महत्व माना गया है। इस व्रत में भगवान शिव शंकर माता पार्वती कार्तिकेय, गणेश और चंद्र देवता की पूजा-अर्चना करने का विधान है। माना जाता है करवाचौथ की कथा सुनने से विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहता है! उनके घर में सुख, शान्ति, समृद्धि और सन्तान सुख मिलता है। सभी विवाहित स्त्रियां साल भर इस त्योहार का इंतजार करती हैं। करवाचौथ का त्योहार पति.पत्नी के मजबूत रिश्तेए प्यार और विश्वास का प्रतीक है।
करवाचौथ के व्रत का अरम्भ कब से शुरू हुआ इसकी सटीक विवरण उपलब्ध नहीं है। इसका विवरण शास्त्रों, पुराणों और महाभारत में मिलता है। श्वामन पुराण में भी करवा चौथ व्रत का वर्णन मिलता है। करवा चौथ से जुड़ी अनेक कथायें भी प्रचलित हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवताओं और दानवों के साथ युद्ध से भी जुड़ा है इसका इतिहास। एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी। ऐसे में देवता ब्रह्मदेव के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने.अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। ब्रह्मदेव ने वचन दिया कि ऐसा करने पर निश्चित ही इस युद्ध में देवताओं की जीत होगी। ब्रह्मदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने खुशी-खुशी स्वीकार किया। ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों यानी देवताओं की विजय के लिए प्रार्थना की। उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई। माना जाता है कि इसी दिन से करवाचौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई।