रिपोर्ट :- विकास शर्मा


हरिद्वार :- तीर्थ नगरी में आज जन्माष्टमी का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाएगा। कोरोना महामारी के चलते मंदिरों में भव्य झांकियों व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन नहीं होगा। भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव पर मंदिरों को भव्य रूप से सजाया जाएगा। हरिद्वार के कृष्ण मंदिरों में सजाने का कार्य प्रातः से ही चल रहा है। श्रद्धालुओं में जन्माष्टमी पर्व का उत्साह देखा जा रहा है। कनखल मंदिरों में भगवान कृष्ण का नवीन पोशाक वह फूलों से श्रृंगार किया जा रहा है। कोरोना महामारी के कारण मंदिरों में किसी भी बड़े आयोजन पर पाबंदी है। लेकिन मंदिरों में भक्तगण कोरोना नियमों का पालन करते हुए भगवान के दर्शन कर सकेंगे।       

कनखल स्थित कृष्ण मंदिरों में आज प्रातः से ही मंदिरों को सजाने का कार्य किया जा रहा है। भगवान श्री कृष्ण और राधा ने प्रेम साधना और रासलीला वृंदावन में यमुना तट पर की थी। इसलिए वृंदावन की कुंज गलियां भगवान कृष्ण की रास लीलाओं के लिए प्रसिद्ध है। वही भगवान शिव की ससुराल कनखल में भी मां गंगा तट पर श्री कृष्ण भक्तों द्वारा प्रेम साधना हेतु दिव्य मंदिरों का निर्माण कराया गया। आज भी कनखल नगरी में गंगा घाट के राजघाट व सतीघाट श्री कृष्ण भक्ति से सरोवर रहते हैं। 

इन पावन तट घाटों पर राधा कृष्ण की भक्ति की धारा  प्रवाहित होती रहती है।कृष्ण भक्ति को गंगा के तट पर साकार रूप प्रदान करने के लिए 16वीं और 17वीं सदी में 2 रियासतों से जुड़े लोगों ने हरिद्वार के कनखल में गंगा तट पर राधा कृष्ण भक्ति की अलख जगाई। 16वीं शताब्दी में हरिद्वार और कनखल में हरिद्वार के ग्रामीण लक्सर क्षेत्र लंढौरा राजघराने की रियासत का काफी लंबे अरसे तक राज रहा। इस राजघराने ने कनखल में रानी की हवेली तथा दक्षेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण कराया लंढौरा राजघराने की रानियां शिव भक्ति के साथ राधा कृष्ण की भक्ति की भी दीवानी थी और यहां वृंदावन से राधा कृष्ण की रासलीला के मंचन के लिए कलाकार लंढौरा रियासत की रानियां हर वर्ष बुलाती थीं और गंगा के इस पावन तट पर राधा कृष्ण की रासलीलाओं का दिव्य भव्य मंचन होता था।

लंढौरा रियासत की रानियां राधा कृष्ण भक्ति में इतनी अधिक तल्लीन हो जाती थीं कि गंगा का यह पावन तट राधा कृष्ण मय हो जाता था। राधा कृष्ण की भक्ति में लीन लंढोरा रियासत की रानियों के आग्रह पर इस रियासत के राजाओं ने कनखल में गंगा तट पर 17वीं शताब्दी में राजघाट का निर्माण कराया था। यह राधा कृष्ण मंदिर प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। इस मंदिर की गगनचुंबी चोटियां हैं और इसके गर्भ गृह में कांगड़ा शैली के अनुभवी कलाकारों ने भित्ति चित्र बनाए हैं। इनमें स्वर्ण निर्मित रंगों का इस्तेमाल किया गया है।
कृष्ण जन्मोत्सव, कृष्ण की छठी महोत्सव और राधाअष्टमी महोत्सव यहां पर बड़े धूमधाम से मनाया जाता है और आज भी गंगा का यह पावन तट राधा-कृष्ण की भक्ति से सराबोर हो जाता है।
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