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मथुरा :- देश में महिलाएं करवा चौथ का व्रत रखती है। ऐसी मान्यता है कि महिलाएं अपने सुहाग की सलामती के लिए यह व्रत रखती है। परंतु भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में एक ऐसा गांव है जहां पर महिलाएं व्रत रखने से परहेज करती हैं। मान्यता है कि यह गांव शापित है। यदि कोई व्रत रख कर पूजा अर्चना करने की हिम्मत भी करेगा तो उसके साथ कोई आपदा होने का डर बना रहा है। आज 21वीं सदी में भी इस रूढ़िवादी विचारधारा का महिलाएं पालन करती है।

जानिए गांव की क्या है कहानी
बताया जाता है कि सती के श्राप से बचने के लिए महिलाएं करवा चौथ का व्रत से परहेज करती हैं। सती माता का मंदिर भी गांव में है। महिलाएं इस मंदिर पर जाकर पूजा करती हैं। गांव के मोहल्ला बाघा में ठाकुर समाज की महिलाएं वर्षों से व्रत नहीं करती हैं। यहां आने वाली नवविवाहिताओं को भी इस बात का डर बना रहा है कि कही सती का श्राप न लग जाए। वह भी इस परंपरा को मानती है। एक विवाहिता ने बताया  कि शादी के बाद गांव में आने पर पता चला कि यह व्रत नहीं रखे जाते हैं। महिलाओं का मानना है कि इस परंपरा को तोडने की हिम्मत करना तो दूर सोचना भी पाप है।

सती ने आखिर ठाकुर समाज को ही क्यो दिया श्राप
बताया जाता है कि सैकड़ों वर्ष पहले गांव रामनगला (नौहझील) का ब्राह्मण युवक अपनी पत्नी को विदा कराकर घर लौट रहा था। सुरीर में होकर निकलने के दौरान वघा मोहल्ले में ठाकुर समाज के लोगों का ब्राह्मण युवक की बग्घी के भैंसा को लेकर विवाद हो गया। जिसमें इन लोगों के हाथों ब्राह्मण युवक की मौत हो गई थी। अपने सामने पति की मौत से कुपित मृतक ब्राह्मण युवक की पत्नी इन लोगों को श्राप देते हुए सती हो गई थी। इसे सती का श्राप कहें या बिलखती पत्नी के कोप का कहर, संयोगवश इस घटना के बाद मोहल्ले में मानो कहर आ गया। कई जवान लोगों की मौत हो गई, महिलाएं विधवा होने लगीं। शोक, डर और दहशत से इन लोगों के परिवार में कोहराम मचाने लगा। जिसे देख कुछ बुजुर्ग लोगों ने इसे कहर को सती का श्राप मानते हुए क्षमा याचना की और मोहल्ले में मंदिर बना कर सती की पूजा-अर्चना शुरू कर दी। तब से  त्योहार मनाना तो दूर इनकी महिलाएं पूरा साज-श्रृंगार भी नहीं करती हैं। उन्हें ऐसा करने पर सती के नाराज होने का भय बना रहता है।
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