गौरव पांडेय


गौरव पांडेय की कलम से......✍🏻


गाजियाबाद :- यूँ तो गाजियाबाद शहर के बारे में जब अखबार उठाओ तो पढ़ने को मिलता कि गाजियाबाद देश का सबसे प्रदूषित शहर लगातार बना हुआ है, ऐसे में हमने गाजियाबाद के ग्रामीण जीवन की ओर रुख किया और सच्चाई जानने की कोशिश की। हमें देखा कि यह प्रदूषण शहर में ही है और जिसके लिए सिर्फ और सिर्फ जिम्मेदार हम ही हैं क्योंकि गाड़ियों से उत्सर्जित होने वाला प्रदूषण, सड़कों पर उड़ रही धूल, निर्माण कार्य से उड़ रही धूल, फैक्ट्रियों की चिमनीओं से निकल रहा धुआ, जलता हुआ कूड़ा, टायर व् प्लास्टिक जलाकर खाना बनाते और हाथ सेकते लोग, तंदूर और सड़क पर खाने पीने के ठेलों की अंगीठियों का धुआँ और न जाने क्या क्या। हमने जब गांव की सैर की तो पता चला कि कि इस प्रदूषण को तो हम रोक सकते हैं।

सुप्रसिद्ध शायर मेराज फैजाबादी के शेर  "ज़िंदगी दी है तो जीने का हुनर भी देना, पाँव बख़्शें हैं तो तौफ़ीक़-ए-सफ़र भी देना, को हमने साइकिलिंग के एक यादगार ट्रिप में जिया।।" उसी तर्ज पर मेरी दो लाइनें अर्ज हैं:- "प्रदूषण दिया है, तो खुली हवा में सांस लेने की जगह भी देना। हम शहर में रह रहे हैं तो क्या हुआ गौरव, शहर के पास एक गाँव भी देना। जहां दरिया हो झीलें हो, चिड़ियों की चहचहाहट हो, जो आए कोई गम में डूबा, उस पर बरसता खुशियों का समंदर हो। ले चलो मुझे उस जमीं पर ऐ गौरव, जहां खुशियों का बसेरा हो।"

क्या आपने कभी सोचा है कि आप शहर में रहते हुए चंद मिनटों में ही ग्रामीण जीवन एवं प्रकृति का आनंद ले सकते हैं? अधिकांश लोग सोचते हैं कि शहरी जीवन, गांव के जीवन की तुलना में अधिक शानदार जीवन है। लेकिन ऐसा नहीं है। कई मायनों में गंवई जीवन ही अव्वल होता है। इंदिरापुरम रनर्स एवं साइकिलिंग ग्रुप द्वारा अमित सिलावट के नेतृत्व में इंदिरापुरम से मात्र 15 किलोमीटर दूर राजनगर एक्सटेंशन क्षेत्र गाजियाबाद के गावों में साइकिल पर सैर की गई। जैसे-जैसे हम गांव की तरफ बढ़े, हमें ताजी एवं स्वच्छ हवा का अनुभव हुआ और प्रदूषण तो जैसे मानो गायब ही हो गया हो। मन से बस यही निकला कि वाह तौफीक साहब आपने जिन बख्शे हुए पावों से सफर का जिक्र किया वो इससे बेहतर नहीं हो सकता। 

कहना न होगा कि जिला गाजियाबाद (दिल्ली-एनसीआर का एक एरिया), वैसे तो पॉल्यूशन लिस्ट में देश में सबसे ऊपर है। लेकिन गाजियाबाद क्षेत्र में ही अविश्वसनीय किंतु सत्य स्वरूप कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जिसे प्रकृति ने संजोकर रखे हुए हैं। जनाब, बस आप एक बार साइकिल उठाइए तो सही, और निकल जाइए शहर से दूर गांव की ओर, जहां आपको आसानी से वह धरोहर नजर आ जाएगी। 

यहां हमें सफर में नहर मिली, तालाब और छोटी झील भी देखने को मिली। गांव की सड़क के किनारे नहर की दीवार पर बगुलों और चिड़ियों की कतार भी देखी, वैसे मानो वो हम सबसे कुछ कहना चाह रही थीं। चिड़ियों की मधुर आवाज ने माहौल में एक मधुर संगीत घोल दिया था। शहरी शोरगुल, हॉर्न की कानफोडू आवाजों के आदी हो चुके कानों को ये संगीत बहुत ही प्यारा लगा। हम भी अपने शहरी अंदाज में उन्हें गुड मॉर्निंग कह कर मन ही मन खुश हो लिए। 

हम गांव में भोर में पहुंचे थे। ऐसे में झील के किनारे हमें उगता हुआ सूर्य दिखाई दिया, जो दृश्य बहुत ही मनोरम था। हमने अनुभव किया कि गांव के लोग असली सुंदरता का आनंद ले सकते हैं। सुबह के उगते सूरज के साथ, शाम के समय ढलते सूरज का सूर्यास्त, उसकी अप्रितम सुंदरता व प्रकृति का आनंद ले सकते हैं।

हमने देखा कि ग्रामीण जीवन में यहां एक बहुत ही सुंदर वातावरण है। इतने वाहन नहीं हैं। ग्रामीण लोगों ने इतने सारे पौधे उगाए हुए हैं कि ये पर्यावरण के लिए वरदान हैं, उससे ही हवा इतना शुद्ध और ताजी है।

हमारे साथ करीब 20 साइकिलिस्ट साथी थे, शलभ गुप्ता ने सभी सदस्यों से गजब का सामंजस्य बनाये रखा। जिनमें 25 किलोमीटर दूर डिफेन्स कॉलोनी से अकेले साइकिल चला कर पहुँची रूचि जोशी, शाहदरा से के के गर्ग जी, इंदिरापुरम रनर्स के अमित, तरुण, राकेश रैना, रचना, मुकुल यादव, अखिलेश, मनीष अग्रवाल, एल आर  पंत, विक्रम, अनुज गुप्ता, मीनू अग्रवाल, दीप्ति चतुर्वेदी, राजेश गोस्वामी, मंजू वर्मा, ऋषि, श्रेय भी मेरे साथ शामिल थे। 

सब ने इस यात्रा का भरपूर आनंद लिया। जिसके बाद सबको यह एहसास हुआ कि यदि हम अपने आसपास की जगह को साफ सुथरा रख सकें और अगर हम सब मिलकर के यह प्रण ले लें कि हम कचरे का उचित निस्तारण करेंगे और अपनी प्रकृति और गांव को बचाने के लिए कतिपय ठोस कदम उठाएंगे तो हम मानव जीवन के लिए एक उचित वातावरण बना सकते हैं। 

सबका मानना था कि यह 3 घंटे की राइड जीवन की एक अमूल्य यादगार क्षण बन कर उनके हृदय में संजोए रहेगी। प्राकृतिक छंटाओं से परिपूर्ण जगहों पर ग्रुप के मेंबरों ने बढ़ चढ़ कर फोटोग्राफी की और अपने आनंद के पलों को मानों सदियों के लिए संजो लिया। वाकई, साइकिल की घंटी की आवाज जब जब कानों में पड़ती हैं, मुड़कर देखता हूँ तो बचपन की यादें दिल में सजती है।
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