सीमा त्यागी


रिपोर्ट :- अजय रावत

गाज़ियाबाद :- जहां एक तरफ सरकार, देश को विश्व गुरु बनाने की बात करती है वही शिक्षा जो सबसे सशक्त माध्य्म है किसी भी देश की पीढ़ी को सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत करने का, उस शिक्षा जैसे अहम मुद्दे पर प्रभावी नीति बनाने से सरकारें डरती है । वर्तमान में भारत के सभी राज्यों में बच्चों को शिक्षा देने के लिए अलग अलग बोर्ड है जिनके पाठ्यक्रम में अनेकों भिन्नताएं है तथा छात्रों की परीक्षाओं के मूल्यांकन में भी समानता नही है केंद्र और राज्यों ने अनुच्छेद 21-ए (स्वतंत्र और अनिवार्य शिक्षा) की भावना के अनुरूप समान शिक्षा प्रणाली को लागू करने के लिए उचित कदम नहीं उठाये है। हम सभी जानते है कि अनुच्छेद 21-ए के तहत बच्चे तब तक अपने मौलिक अधिकारों का पूर्ण रूप से उपयोग नहीं कर सकते जब तक कि केंद्र और राज्य एक समान शिक्षा प्रदान नहीं करते है । 

सामाजिक-आर्थिक समानता और न्याय प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि सभी  स्कूलों में पाठ्यक्रम समान हो चाहे वह प्रबंधन, स्थानीय निकाय, केंद्र या राज्य सरकार द्वारा चलाया जा रहा हो जिसके लिये सरकार को देश के राज्यों के विभिन्न बोर्ड एवम इंडियन सर्टिफिकेट ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन बोर्ड ( ICSE ) और सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन ( CBSE) आदि का विलय करके "एक देश एक शिक्षा बोर्ड" स्थापित करने की तरफ कदम उठाने चाहिए । देश के विभिन्न राज्यों के प्रचलित भाषा के अनुसार शिक्षा का माध्यम भिन्न हो सकता है, लेकिन 6-14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों के लिए पाठ्यक्रम समान होना चाहिए। 

क्योंकि वर्तमान में प्रत्येक शिक्षा बोर्ड का अपना -अपना पाठ्यक्रम है और मूल्यांकन का तरीका भी भिन्न है जबकि उच्च शिक्षा एवं तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने की प्रवेश परीक्षायें सीबीएसई बोर्ड पर आधारित होती है इसलिए देश के सभी छात्रों को समान अवसर प्रदान नहीं होता  है। जब देश में "एक देश एक टैक्स औऱ एक देश एक राशन कार्ड" किया जा सकता है तो देश के निर्माण के लिये "एक राष्ट्र - एक बोर्ड" क्यों नही लागू किया जा सकता है. सरकार को चाहिये की अब देश के बच्चों को समान शिक्षा का अधिकार देने के लिये "एक राष्ट्र - एक बोर्ड का गठन" कर देश को विश्व गुरु बनाने के पथ पर अग्रसर करे ।
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