◼️आरती के बाद मां को नारियल से निर्मित मिष्ठान का भोग लगाया गया
रिपोर्ट :- अजय रावत
गाजियाबाद :- सिद्धपीठ श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर में गुप्त नवरात्रि के अष्टम दिन अष्टम महाविद्या मां मातंगी की आराधना की गई। मां मातंगी की आराधना के लिए मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड लगी रही। मंदिर के पीठाधीश्वर श्रीमहंत नारायण गिरि के पावन सानिध्य में चल रहे विशेष पूजा-अनुष्ठान में मां की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की गई व उनका ध्यान लगाया गया। आरती के बाद मां को नारियल से निर्मित मिष्ठान का भोग लगाया गया।
श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर, श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ताए दिल्ली संत महामंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष व हिंदू यूनाइटिड फ्रंट के अध्यक्ष श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने कहा कि दस महाविद्याओं में अष्टम दिवस मां मातंगी की पूजा.अर्चना की जाती है। मान्यता अनुसार चांडाल महिलाओं ने देवी पार्वती की पूजा आराधना कर उन्हें अपना ही जूठन-खाया हुआ भोग लगा दिया तो देवगण और शिवगण नाराज हो गए परंतु देवी पार्वती ने अपनी उन भक्तों की भक्ति को देखते हुए मातंगी रूप धारण करके उनके भोग को स्वीकार करके ग्रहण कर लिया। तभी से वे माता मातंगी कहलाई जाने लगी।
मातंगी देवी इंद्रजाल और जादू के प्रभाव को नष्ट करती हैं। देवी को वचन, तंत्र और कला की देवी भी माना गया है। मां को जूठन का भोग अर्पित किया जाता है। मां मातंगी ही समस्त देवियों में ऐसी हैं, जिन्हें जूठन का भोग अर्पित किया जाता है। इन्हें प्रसन्न करने के लिए व्रत नहीं रखा जाता है। मान्यता है कि यह केवल मन और वचन से ही तृप्त हो जाती हैं। माता मातंगी को सुमुखी, लघुश्यामा या श्यामला, राज.मातंगी, कर्ण.मातंगी, मातंगेश्वरी आदि नामों से भी जाना जाता है। शिव की यह शक्ति असुरों को मोहित करने वाली और साधकों को अभिष्ट फल देने वाली है। गृहस्थ जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए लोग इनकी पूजा करते हैं।
मातंगी बीज मंत्र ऊँ ह्नीं ऐ भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहाः।।