◼️कायिक, वाचिक और मानसिक पाप धुल जाते हैं इस दिन गंगा स्नान करने से: आचार्य शिवकुमार शर्मा

सर्वार्थ सिद्धि योग,अमृत सिद्धि योग और मानस योग में मनाया जाएगा श्री गंगा दशहरा



रिपोर्ट :- अजय रावत 

गाज़ियाबाद :- शिव शंकर ज्योतिष एवं वास्तु अनुसंधान केंद्र, गाजियाबाद द्वारा बताया गया है कि
ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को प्रत्येक वर्ष श्रीगंगा दशहरा का पुण्य उत्सव मनाया जाता है।
इस बार श्री गंगा दशहरा 16 जून, रविवार को मनाया जाएगा। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग और मानस योग बन रहा है ,इससे इस पर्व का महत्व और अधिक बढ़ गया है।

इस दिन गंगा स्नान करने का बहुत बड़ा महत्व है।
पुराणों में वर्णित उल्लेख के अनुसार श्री गंगा सप्तमी (वैशाख शुक्ल सप्तमी) को गंगा जी स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर आई थी। उसकी तीव्र धारा पृथ्वी के अंदर न समा जाए, इसलिए महाराज भागीरथ की प्रार्थना पर  भगवान शिव ने अपनी जटाओं में गंगा जी को धारण कर लिया था। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी गंगा दशहरे के दिन भगवान शिव की जटाओं से निकल करके धीरे-धीरे कलकल की आवाज में करती हुई गंगा गंगोत्री के उद्गम स्थल से  निकल कर अपने लक्ष्य की ओर चली ।तब ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तिथि थी। तभी से गंगा दशहरा उत्सव मनाने का आरंभ  हुआ।ऐसा कहते हैं कि गंगा दशहरा को गंगा स्नान का बड़ा महत्व है ।

इस दिन गंगा स्नान तीनों प्रकार के  पाप कायिक (शरीर द्वारा किए गए पाप), वाचिक (वाणी संबंधी किए गए पाप)और मानसिक (मन से किए गए पाप)। तीनों प्रकार के 10 प्रकार के पाप बताए गए हैं। उनसे मुक्ति के लिए गंगा दशहरे के दिन गंगा स्नान करना बहुत उत्तम है। उनके सारे पापों को नष्ट कर देता है। इसके साथ-साथ अपने पितरों की मुक्ति के लिए पितृ शांति के लिए इस दिन गंगा स्नान कर पितरों को जलांजलि देना बहुत उत्तम होता है ।घर में रहकर स्नान के जल में गंगाजल और काले तिल मिलाकर स्नान करके पितरों को जल देना ।उनके निमित्त अन्न ,जल ,भोजन का उचित पात्र को दान करना बहुत ही कल्याणकारी होता है।

शाम के समय पितरों के निमित्त गंगा जी में दीपदान करना एवं घर के द्वारों पर भी दीप जलाना बहुत कल्याणकारी माना गया है ।अधम लोकों  में अधम गति को प्राप्त हुए हमारे पितर देव  दीपदान से मुक्त होकर के स्वर्ग आदि पवित्र लोकों में चले जाते हैं।

प्रातः काल उठ करके ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान करें ।गंगा स्नान गंगा जी अथवा  तीर्थक्षेत्र में जाकर पवित्र नदियों में स्नान करें।अगर वहां जाना संभव नहीं है तो घर में ही स्नान के जल में गंगाजल, काले तिल मिलाकर स्नान करें। पितरों को काले तिल युक्त जल से जलांजलि दें। ईश्वर से उनकी मुक्ति के लिए प्रार्थना करें, पितृ सूक्त का पाठ करें । और पितरों से प्रार्थना करेगी अपने परिवार के कल्याण के लिए कृपा बनाए रखें।

पूजा के समय गंगा मैया की आरती करें। यदि हो सके तो योग्य सत्पात्र को भोजन आदि कराएं।  उनको जलीय वस्तुओं का दान करें ।पंखा ,छतरी जल ,शरबत, खीरा,तरबूज ,खरबूजा, फल ,मिष्ठान आदि  दान करें ।इससे  गंगा दशहरा के उत्सव का पुण्य फल प्राप्त होता है।

आचार्य शिवकुमार शर्मा, ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु कंसलटेंट, गाजियाबाद
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