रिपोर्ट :- अजय रावत
गाज़ियाबाद :- विश्व ब्रह्मऋषि ब्राह्मण महासभा के पीठाधीश्वर ब्रह्मऋषि विभूति बीके शर्मा हनुमान ने आज गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर अपने मुखारविंद से वाणी की वर्षा करते हुए कहा कि अपनी महत्ता के कारण गुरु को ईश्वर से भी ऊँचा पद दिया गया है। शास्त्र वाक्य में ही गुरु को ही ईश्वर के विभिन्न रूपों- ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश्वर के रूप में स्वीकार किया गया है। गुरु को ब्रह्मा कहा गया क्योंकि वह शिष्य को बनाता है नव जन्म देता है। गुरु, विष्णु भी है क्योंकि वह शिष्य की रक्षा करता है गुरु, साक्षात महेश्वर भी है क्योंकि वह शिष्य के सभी दोषों का संहार भी करता है।
संत कबीर कहते हैं-'हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर॥'
अर्थात भगवान के रूठने पर तो गुरू की शरण रक्षा कर सकती है किंतु गुरू के रूठने पर कहीं भी शरण मिलना सम्भव नहीं है।
जिसे ब्राह्मणों ने आचार्य, बौद्धों ने कल्याणमित्र, जैनों ने तीर्थंकर और मुनि, नाथों तथा वैष्णव संतों और बौद्ध सिद्धों ने उपास्य सद्गुरु कहा है उस श्री गुरू से उपनिषद् की तीनों अग्नियाँ भी थर-थर काँपती हैं। त्रोलोक्यपति भी गुरू का गुणनान करते है। ऐसे गुरू के रूठने पर कहीं भी ठौर नहीं। अपने दूसरे दोहे में कबीरदास जी कहते है सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार लोचन अनंत, अनंत दिखावण हार- अर्थात सद्गुरु की महिमा अपरंपार है। उन्होंने शिष्य पर अनंत उपकार किए है। उसने विषय-वासनाओं से बंद शिष्य की बंद ऑखों को ज्ञानचक्षु द्वारा खोलकर उसे शांत ही नहीं अनंत तत्व ब्रह्म का दर्शन भी कराया है। अतः सद्गुरु की महिमा तो ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी गाते है, मुझ मानुष की बिसात क्या। दुनिया के समस्त गुरुओं को मेरा नमन।
बीके शर्मा हनुमान ने यह भी बताया कि मां पृथ्वी से बड़ी, पिता आकाश से ऊंचा है। माता-पिता से बढ़कर संसार में कोई तीर्थ देवता या गुरु नहीं है। जो संस्कार माता-पिता से प्राप्त होते हैं वह संस्कार अन्य किसी से भी प्राप्त नहीं हो सकता। माता-पिता की सेवा से ही समस्त तीर्थों की यात्रा का पुण्य प्राप्त होता है। शास्त्र कहते हैं कि गुरु वह है, जो हमें अंधेरे से उजाले की ओर ले जाए। जो हमें रोशनी प्रदान करे। तो सबसे पहले ऐसा कौन करता है? सबसे पहले यह रोशनी हमें माँ दिखाती है। उसके बाद पिता। वही हमारे प्रथम गुरु हैं। इसीलिए शास्त्रों में यह भी लिखा है कि माता- पिता का यथायोग्य सम्मान करना चाहिए। जरा सोचो कि अगर हमें हमारे माता-पिता द्वारा कुछ भी सिखाया न जाता तो हमारी क्या स्थिति होती। क्या हम ढंग से चल पाते, बात कर पाते, लिख पाते, व्यवसाय कर पाते ! यहाँ तक कि हम अपने जीवन और इस शरीर की रक्षा कैसे करना है, यह भी नहीं जान पाते। मान-अपमान, प्यार और अहंकार जैसी मूल वृत्तियों को पहचानना भी हमें वही सिखाते हैं।
भगवान प्रसन्न होते हैं आपसे, अगर आप अपने माता-पिता की बात मानें, उनकी सेवा करें। भगवान को सबका पिता कहा गया है। लेकिन अगर आप जागतिक माता-पिता को प्रसन्न नहीं कर पाएंगे तो आध्यात्मिक पिता अर्थात भगवान को कैसे प्रसन्न कर पाएंगे? यदि आप माता-पिता को आप प्रसन्न नहीं कर पाते तो कोई गुरु-सद्गुरु आपको सन्मार्ग पर नहीं ले जा सकता। अगर वे प्रसन्न नहीं हैं तो भगवान भी प्रसन्न नहीं होंगे। इस अवसर पर डॉ एके जैन,डॉ मिलन मंडल,डॉ एसपी गुप्ता, डॉ आरपी शर्मा,डॉ सुबोध त्यागी, डॉ नूर मोहम्मद,डॉ रुखसाना परवीन,डॉ विनीत कुमार शर्मा, डॉ केपी सरकार, डॉ बी पी सिंह, डॉ देवाशीष ओझा, डॉ निशा चौधरी,डॉ सुभाष शर्मा,डॉ दिलीप कुमार,डॉ बिल्लू कुमार प्रजापति, डॉ देवेंद्र कुमार, डॉ एन एस तोमर,डॉ फरहा खान, डॉक्टर फुरकान अली, डॉ श्याम लाल सरकार,डॉ सपन सिकदर,डॉ श्रीकांत मलिक,डॉ उस्मान अली, डॉ सुनीता बहल, डॉ एस निशा, वरिष्ठ समाजसेवी विनीता पाल, नदीम चौधरी,आदि सैकड़ों लोग मौजूद थे।