◼️गुरु पूर्णिमा के दिन गुरू की पूजा करने व आशीर्वाद लेने से जीवन की बाधाएं दूर होती हैं



सिटी न्यूज़ | हिंदी......✍🏻

गाजियाबाद :- श्री सिद्धेश्वर महादेव कुटी पाइप लाइन मकरेडा के महंत मुकेशानंद गिरी महाराज वैद्य ने कहा कि रविवार 21 जुलाई को गुरू पूर्णिमा का पर्व है। इस बार की गुरू पूर्णिमा खास है क्योंकि इस बार कई योग का शुभ संयोग बन रहा है। सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 05 बजकर 37 मिनट पर शुरू होगा और इसका समापन मध्य रात्रि 12 बजकर 14 मिनट पर होगा। इसके साथ ही उत्तराषाढ नक्षत्र भोर से लेकर मध्य रात्रि 12 बजकर 14 मिनट तक रहेगा। श्रवण नक्षत्र और प्रीति योग का भी निर्माण होगा। विष्कंभ योग भी प्रातः से लेकर रात्रि 09 बजकर 11 मिनट तक बन रहा है। ऐसे कई शुभ योग में गुरू की पूजा-अर्चना करने या उनसे दीक्षा लेने का महत्व और भी बढ जाएगा। 

गुरू की कृपा से सभी कष्ट दूर होंगे और जीवन में सफलता मिलेगी और सुख-शांति व समृद्धि आएगी। महंत मुकेशानंद गिरी महाराज वैद्य ने बताया कि यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। सनातन धर्म में महर्षि व्यास को भगवान का रूप माना जाता है। आषाढ़ माह के पूर्णिमा तिथि को ही महर्षि वेदव्यास ने अपने शिष्य और ऋषि मुनियों को श्रीमद्भागवत पुराण का ज्ञान दिया था, तभी से महर्षि व्यास के शिष्यों ने इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाने की परंपरा शुरू की जो आज तक जारी है। जीवन में गुरु का होना महत्वपूर्ण है। गुरु को भगवान से भी बड़ा माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार गुरु दो शब्दों गु व रू से मिलकर बना है। गु यानि अंधकार और अज्ञान रू यानि अंधकार व अज्ञान को दूर करने वाला। जो हमारे जीवन में अज्ञानता के अंधकार को दूर कर दें, वहीं सदगुरू होता है और इसीलिए गुरू को भगवान भी बढकर दर्जा दिया गया है। इसी कारा जीवन में गुरु का होना बहुत जरूरी है। भगवान के रूठने पर गुरु की शरण मिल जाती है, लेकिन गुरु अगर रूठ जाए तो कहीं भी शरण नहीं मिलती। इसी कारण जीवन में गुरु का विशेष महत्व है। गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरू की पूजा करने या आशीर्वाद लेने से जीवन की बाधाएं दूर हो जाती हैं।
 
इस संसार सागर में मनुष्य तीन तापों से तपने  कारण आनंद से वंचित रहता है । दुखों से ही घिरा हुए रहता है। जिसके कारण वह मूलस्रोत से भटक जाता है ईर्ष्या, द्वेष, तनाव, क्लेश, आदि में अपने अमूल्य जीवन को खो देता है। अंत में अधोगति को प्राप्त हो जाता है। अपने लक्ष्य से भटक जाता है। किंतु जब जीव गुरु की शरण में होता है तो गुरु उसके, तीनों तापों को दूर करके सन्मार्ग दे देते है। जिस पर चलकर जीव आनंद में रहते हुए, अंत में आनंद को ही प्राप्त होता है।
गुरु की महिमा का व्याखान नहीं किया जा सकता है इसलिए संत कबीरदास ने कहा है कि

" सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय ।
 सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय । 
यह सच है किहमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है , गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है।
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