रिपोर्ट :- अजय रावत
गाजियाबाद :- एक बार पुनः दृश्यमान होगी शामियानों की सुंदर नगरी, सन्त निरंकारी आध्यात्मिक स्थल समालखा के विशाल मैदानों में जहां 76वें वार्षिक निरंकारी सन्त समागम के रूप में दिखेगा सार्वभौमिक भाईचारे एंव विश्वबन्धुत्व का अनुपम स्वरूप।
यह आध्यात्मिक सन्त समागम सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज एवं निरंकारी राजपिता जी के पावन सान्निध्य में भव्यता पूर्ण आयोजित होने जा रहा है। इस पावन संत समागम में देश, विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु एंव भक्तगण सम्मिलित होकर इस भव्य संत समागम का भरपूर आनंद प्राप्त करते हुए सतगुरु के साकार दर्शन एवं पावन आशीष भी प्राप्त करेंगे।
इस वर्ष निरंकारी सन्त समागम का विषय है ‘‘सुकुन : अंर्तमन का’’ जिस पर देश, विदेशों से सम्मिलित हुए गीतकार, वक्तागण अपने शुभ भावों को कविताओं, गीतों एवं विचारों के माध्यम से व्यक्त करेंगे और विभिन्न भाषाओं में दी गई इन प्रस्तुतियों का आनंद सभी श्रोतागण प्राप्त करेंगे।
जैसा कि विदित ही है कि निरंकारी सन्त समागम के पावन अवसर की प्रतीक्षा में हर श्रद्धालु भक्त की केवल यही हार्दिक इच्छा रहती है कि कब संत समागम का आयोजन हो और कब वह इस सुअवसर का साक्षी बनें। यह सन्त समागम निरंकारी मिशन द्वारा दिये जा रहे सत्य, प्रेम और शान्ति के दिव्य संदेश को जन-जन तक पहुँचाने हेतु एक ऐसा सशक्त माध्यम हैं जो आध्यात्मिक जागरूकता के माध्यम से समूचे संसार में समानता, सौहार्द्र एवं प्रेम का सुंदर स्वरूप प्रदर्शित कर रहा है। वर्तमान समय में जिसकी नितांत आवश्यकता भी है।
सन्त निरंकारी मिशन का पहला समागम सन् 1948 में मिशन के दूसरे गुरू शहनशाह बाबा अवतार सिंह जी के नेतृत्व में दिल्ली के पहाड़गंज में हुआ। उसके उपरांत शहनशाह जी ने अपने प्रेम से संत समागम की श्रृंखला को गति प्रदान करी। तदोपरांत बाबा गुरबचन सिंह जी ने सहनशीलता और नम्रता जैसे दिव्य गुणों द्वारा इसका और अधिक रूप में विस्तारण किया। अंर्तराष्टीय स्तर पर इन दिव्य मानवीय मूल्यों को ख्याति प्रदान करवाने में बाबा हरदेव सिंह जी ने अपना अहम् योगदान दिया जिसके परिणामस्वरूप आज समूचे विश्व में मिशन की लगभग 3,485 शाखाएं है। आध्यात्मिकता की इस पावन ज्योति को जन जन तक पहुंचाने हेतु सतगुरु माता सविन्दर हरदेव जी ने भी अथक प्रयास किये और अपने कर्तव्यों को बखूबी रूप में निभाया। वर्तमान में सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ब्रह्मज्ञान की इस दिव्य रोशनी को विश्व के प्रत्येक कोने में एक नई ऊर्जा के साथ संचारित कर रहे हैं।
यह दिव्य सन्त समागम शांति, समरसता, विश्वबन्धुत्व और मानवीय गुणों का एक ऐसा सुंदर प्रतीक है जिसका एकमात्र लक्ष्य ‘एकत्व में सदभाव’ तथा शांति की भावना को प्रदर्शित करना है।