सुशील कुमार शर्मा, स्वतंत्र पत्रकार 
       
गाजियाबाद :- रविवार को महाभारतकालीन खाटू श्याम मंदिर,चुलकाना धाम, जिला पानीपत (हरियाणा) जाना हुआ। इससे पहले राजस्थान स्थित खाटूश्यामजी की ही जानकारी थी। वहां देखकर पता लगा कि यही वह ऐतिहासिक स्थान है जहां भगवान श्री कृष्ण ने ब्राह्मण बनकर पांडवों की जीत सुनिश्चित करने के लिए भीम के पुत्र घटोत्कच के बेटे बर्बरीक से उसका सिर मांग  लिया था और उसने तत्काल दे दिया था। वही बर्बरीक श्री कृष्ण के आशीर्वाद से खाटूश्यामजी (जिन्हें हारे का सहारा कहा जाता है), कहलाये। हमारे दल के 20 सदस्यों में गाजियाबाद से योगाचार्य राकेश शर्मा ,  इंजीनियरिंग कंसल्टेंट अरूण शर्मा, चिकित्सा विभाग  उत्तर प्रदेश से सेवानिवृत डॉ.ओ.पी.अग्रवाल व उनकी पत्नी , डॉ.रूचि व उनकी बेटी डॉ.पलक,लाला दयाशंकर, योगाचार्य, रेकी मास्टर व नेचरोपैथ अर्चना शर्मा, मैं (स्वतंत्र पत्रकार सुशील कुमार शर्मा), इंदिरापुरम से मोनिका गुप्ता, उनकी माताजी श्रीमती विनोद (शाहदरा से), राजेन्द्र नगर से दीपा गर्ग व  गौड सिटी नोएडा से वात्सी वत्स शामिल थे।  चुलकाना से पहले  मूरथल  (सोनीपत के पास)  सुखदेव के विशाल ढावे में जहां सैकड़ों लोगों के एक साथ बैठकर खाने की सुन्दर व्यवस्था थी वहां के प्रसिद्ध आलू, गोभी ,पनीर आदि के परांठे जो मक्खन के साथ मिलते हैं का आनंद लिया। वहां की  साफ- सफाई उल्लेखनीय थी।सुना था उसका एक परांठा खाकर तृप्त हो जाते है। सच में ऐसा ही अनुभव हमारा भी रहा।
    
जब हम चुलकाना धाम पहुंचे तो वहां अपार भीड़ देखकर आश्चर्यचकित रह गए। वहां के लोगों ने बताया कि बाबा श्याम के दर्शन के लिए यहां देश के विभिन्न प्रान्तों से सपरिवार लोग आते हैं। यहां हमेशा भीड़ रहती है। लेकिन आज एकादशी है सुबह से माता का विशाल जागरण हो रहा है,आज रविवार भी है। इसलिए ज्यादा भीड़ है।जब यह बात हो रही थी तब यह अंदाजा नहीं था कुछ ही देर में इतनी भीड़ हो जायेगी कि हम सभी एक- दूसरे से बिछड़ जायेंगे। भीड़ में मेरी हालत ऐसी हो गयी थी कि आगे, पीछे और साइडों में भी धक्के लग रहे थे।  पैरों पर पैर पड रहे थे। चारों तरफ छोटे- छोटे बच्चों को लेकर महिलायें थी, उनका सहारा भी नहीं लिया जा सकता था। उनके गोद में और आगे पीछे भी बच्चे थे।  हमारे साथ के मेरे अलावा सब लोग बस पर देर सबेर पहुंच गए थे। मुझसे सम्पर्क के लिए मेरी पत्नी अर्चना शर्मा और हमारे साथ गये मित्रदल से दीपा जी और वात्सी दो घंटे तक लगातार मुझे फोन करते रहे। परन्तु नेटवर्क काम न करने तथा शोर शराबे में कुछ पता नहीं लग पा रहा था । मैं दो घंटे इसी स्थिति में फंसा रहा।भीड में गिरने से बचने के लिए मुझे कड़ी मशक्कत करनी पड रही थी। गिरने का मतलब होता भीड़ से कुचले जाना। मुझे चक्कर आने लगे थे तभी मैंने अपने लिए अनाउंसमेंट सुना। फिर हिम्मत कर इसी स्थिति में बीच से साइड तक आया और व्यवस्था में लगे सेवकों से कहा कि मेरा अनाउंसमेंट हो रहा है तब मैं निकल पाया।उस स्थिति को याद कर मैं अब भी सिहर जाता हूं।
      
यह महाभारतकालीन प्राचीन प्रसिद्ध स्थल हरियाणा राज्य के पानीपत जिले के समालखा कस्बे से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित चुलकाना गांव है जो अब *चुलकाना धाम* के नाम से प्रसिद्ध है। यही वह पवित्र स्थान है जहां पर बाबा (बर्बरीक) ने ब्राह्मण भेज में आये भगवान श्री कृष्ण को अपने शीश का दान दिया था।चुलकाना धाम को कलिकाल का सर्वोत्तम तीर्थ माना जाता है। इस स्थान का संबंध महाभारत काल से जुड़ा है। पाण्डव पुत्र भीम के पुत्र घटोत्कच का विवाह दैत्य पुत्री कामकन्टकटा के साथ हुआ था। उसी का पुत्र बर्बरीक था। बर्बरीक को महादेव एवं विजया देवी का आशीर्वाद प्राप्त था। उनकी आराधना से बर्बरीक को तीन बाण प्राप्त हुए थे। जिनसे वह सम्पूर्ण सृष्टि का संहार कर सकता था। बर्बरीक की माता को संदेह था कि पाण्डव महाभारत युद्ध में जीत नहीं सकते। पुत्र की वीरता को देख माता  ने बर्बरीक से वचन मांगा कि तुम युद्ध तो देखने जाओ  लेकिन यदि युद्ध करना पड जाये तो तुम्हें हारने वाले का साथ देना है। मातृभक्त पुत्र ने माता का वचन स्वीकार किया इसलिए उसको *हारे का सहारा* भी कहते हैं।   
       
माता की आज्ञा लेकर बर्बरीक युद्ध देखने के लिए घोड़े पर सवार होकर निकल पड़े। उनके घोड़े का नाम लीला था। जिससे उन्हें लीला का असवार भी कहा जाता था। जब वह युद्ध में पहुंचे तो उनका विशालकाय रूप देखकर सैनिक डर गये। श्री कृष्ण ने उनका परिचय जानने के बाद ही पांडवो को वहां आने के लिए कहा। श्री कृष्ण  ब्राह्मण का भेष धारण कर बर्बरीक के निकट पहुंचे। बर्बरीक उस समय पूजा में लीन थे। पूजा खत्म होने के बाद बर्बरीक ने ब्राह्मण के रूप में आये श्री कृष्ण से कहा कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं। श्री कृष्ण ने कहा कि क्या जो मैं मांगू आप उसे दे सकते हैं।बर्बरीक ने कहा कि मेरे पास देने के लिए कुछ नहीं है, फिर भी यदि आपकी दृष्टि में कुछ ऐसा है तो मैं देने के लिए तैयार हूं। श्री कृष्ण ने उनसे शीश का दान मांगा। बर्बरीक ने कहा कि मैं शीश दान दूंगा, लेकिन ब्राह्मण कभी शीश दान नहीं मांगता है। आपको यह बताना होगा कि आप सच बतायें आप कौन हैं। तब श्री कृष्ण वास्तविक रूप में प्रकट हुए । बर्बरीक ने उनसे पूछा कि आपने ऐसा क्यों किया।तब श्री कृष्ण ने कहा कि इस युद्ध की सफलता के लिए किसी महाबली की बलि चाहिए थी।
        
श्री कृष्ण ने कहा कि धरती पर तीन ही वीर महाबली हैं। मैं, अर्जुन और तीसरे तुम हो। क्योंकि तुम पाण्डव कुल से हो कुल की रक्षा के लिए तुम्हारा बलिदान सदैव याद किया जायेगा। बर्बरीक ने देवी -देवताओं का वंदन किया और माता को नमन कर एक ही वार से शीश को धड से अलग कर श्री कृष्ण को दान के रूप में अर्पित कर दिया। श्री कृष्ण ने शीश को हाथ में लेकर उसे अमृत से सींचकर अमर करते हुए एक टीले पर रख दिया। जिस स्थान पर वह शीश रखा गया वह पवित्र स्थान *चुलकाना धाम* है। जिसे वर्तमान में *प्राचीन सिद्ध श्री श्याम मंदिर चुलकाना धाम* कहा जाता है । श्याम मंदिर के पास एक पीपल का पेड़ है।इस पीपल के पत्तों में आज भी छेद हैं जिसे मध्य युग में महाभारत के समय में वीर बर्बरीक ने अपने बाणों से बेधा था।
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